छत्रसाल की वीरता chatrasal ki veerta
छत्रसाल की वीरता
बात उस समय की है, जब दिल्ली के सिंहासन पर औरंगजेब बैठ चुका था।विंध्यवासिनी देवी के मंदिर में मेला लगा हुआ था, जहाँ उनके दर्शन हेतु लोगों की खूब भीड़ जमी थी। पन्नानरेश छत्रसाल उस वक्त 13-14 साल के किशोर थे। छत्रसाल ने सोचा कि 'जंगल से फूल तोड़कर फिर माता के दर्शन के लिए जाऊँ।' उनके साथ हम उम्र के दूसरे राजपूत बालक भी थे। जब वे जंगल में फूल तोड़ रहे थे, उसी समय छः मुसलमान सैनिक घोड़े पर सवार होकर वहाँ आये और उन्होंने पूछाः "ऐ लड़के ! विंध्यवासिनी का मंदिर कहाँ है?"छत्रसालः "भाग्यशाली हो, माता का दर्शन करने के लिए जा रहे हो। सीधे... सामने जो टीला दिख रहा है, वहीं मंदिर है।"सैनिकः "हम माता के दर्शन करने नहीं जा रहे, हम तो मंदिर को तोड़ने के लिए जा रहे हैं।"छत्रसाल ने फूलों की डलिया एक दूसरे बालक को पकड़ायी और गरज उठाः "मेरे जीवित रहते हुए तुम लोग मेरी माता का मंदिर तोड़ोगे?"सैनिकः "लड़के तू क्या कर लेगा? तेरी छोटी सी उम्र, छोटी-सी-तलवार.... तू क्या कर सकता है?"छत्रसाल ने एक गहरा श्वास लिया और जैसे हाथियों के झुंड पर सिंह टूट पड़ता है, वैसे ही उन घुड़सवारों पर वह टूट पड़ा। छत्रसाल ने ऐसी वीरता दिखाई कि एक को मार गिराया, दूसरा बेहोश हो गया.... लोगों को पता चले उसके पहले ही आधा दर्जन सैनिकों को मार भगाया। धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की वीर छत्रसाल ने।भारत के ऐसे ही वीर सपूतों के लिए किसी ने कहा हैः
तुम अग्नि की भीषण लपट, जलते हुए अंगार हो।
तुम चंचला की द्युति चपल, तीखी प्रखर असिधार हो।
तुम खौलती जलनिधि-लहर, गतिमय पवन उनचास हो।
तुम राष्ट्र के इतिहास हो, तुम क्रांति की आख्यायिका।
भैरव प्रलय के गान हो, तुम इन्द्र के दुर्दम्य पवि।
तुम चिर अमर बलिदान हो, तुम कालिका के कोप हो।
पशुपति रूद्र के भ्रूलास हो, तुम राष्ट्र के इतिहास हो।
छत्रसाल की वीरता chatrasal ki veerta
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