अमर शहीद गुरु तेगबहादुरजी-Guru-Teg-Bahadur

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हिन्दस्तान में औरंगजेब का शासनकाल था। किसी इतिहासकार ने लिखा हैः

'औरंगजेब ने यह हुक्म दिया कि किसी हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर नियत न किया जाये तथा  हिन्दुओं पर जजिया (कर) लगा दिया जाय। उस समय अनेकों नये कर केवल हिन्दुओं पर लगाये गये। इस भय से अनेकों हिन्दू मुसलमान हो गये। हिन्दुओं के पूजा-आरती आदि सभी धार्मिक कार्य बंद होने लगे। मंदिर गिराये गये, मसजिदें बनवायी गयीं और अनेकों धर्मात्मा मरवा दिये गये। उसी समय की उक्ति है कि 'सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना उतरवा कर औरंगजेब रोटी खाता था....'

उसी समय कश्मीर के कुछ पंडितों ने आकर गुरु तेगबहादुरजी से हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार का वर्णन किया। तब गुरु तेगबहादुरजी का हृदय द्रवीभूत हो उठा और वे बोलेः

"जाओ, तुम लोग बादशाह से कहो कि हमारा पीर तेगबहादुर है। यदि वह मुसलमान हो जाये तो हम सभी इस्लाम स्वीकार कर लेंगे।"

पंडितों ने वैसा की किया जैसा कि श्री तेगबहादुरजी ने कहा था। तब बादशाह औरंगजेब ने तेगबहादुरजी को दिल्ली आने का बुलावा भेजा। जब उनके शिष्य मतिदास और दयाला औरंगजेब के पास पहुँचे तब औरंगजेब ने कहाः

"यदि तुम लोग इस्लाम धर्म कबूल नहीं करोगे तो कत्ल कर दिये जाओगे।"

मतिदासः "शरीर तो नश्वर है और आत्मा का कभी कत्ल नहीं हो सकता।"

तब औरंगजेब ने क्रोधित होकर मतिदास को आरे से चिरवा दिया। यह देखकर दयाला बोलाः

"औरंगजेब ! तूने बाबर वंश को और अपनी बादशाहियत को चिरवाया है।"

यह सुनकर औरंगजेब ने दयाला को जिंदा ही जला दिया।

औरंगजेब के अत्याचार का अंत नहीं आ रहा था। फिर गुरुतेगबहादुरजी स्वयं गये। उनसे भी औरंगजेब ने कहाः

"यदि तुम मुसलमान होना स्वीकार नहीं करोगे तो कल तुम्हारी भी यही दशा होगी।"

दूसरे दिन (मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को) बीच चौराहे पर तेगबहादुरजी का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। धर्म के लिए एक संत कुर्बान हो गये। तेगबहादुरजी के बलिदान ने जनता में रोष पैदा कर दिया। अतः लोगों में बदला लेने की धुन सवार हो गयी। अनेकों शूरवीर धर्म के ऊपर न्योछावर होने को तैयार होने लगे। तेग बहादुरजी के बलिदान ने समय को ही बदल दिया। ऐसे शूरवीरों का, धर्मप्रेमियों का बलिदान ही भारत को दासता की जंजीरी से मुक्त करा सका है।

देश तो मुक्त हुआ किंतु क्या मानव की वास्तविक मुक्ति हुई? नहीं। विषय-विकार, ऐश-आराम और भोग-विलासरूपी दासता से अभी भी वह आबद्ध ही है और इस दासता से मुक्ति तभी मिल सकती है जब संत महापुरुषों की शरण में जाकर उनके बताये मार्ग पर चलकर मुक्ति पथ का पथिक बना जाय। तभी मानव-जीवन सार्थक हो सकेगा।

अमर शहीद गुरु तेगबहादुरजी


धर्मदेश के हित में जिसने पूरा जीवन लगा दिया।


इस दुनिया में उसी मनुज ने नर तन को सार्थक किया।।


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