आशीर्वाद BLESSING

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एक गरीब वृद्ध पिता के पास अपने अंतिम समय में दो
बेटों को देने के लिए मात्र एक आम था। पिताजी
आशीर्वादस्वरूप दोनों को वही देना चाहते थे, किंतु
बड़े भाई ने आम हठपूर्वक ले लिया। रस चूस लिया
छिल्का अपनी गाय को खिला दिया। गुठली छोटे
भाई के आँगन में फेंकते हुए कहा- ' लो, ये पिताजी का
तुम्हारे लिए आशीर्वाद है।'



छोटे भाई ने ब़ड़ी श्रद्धापूर्वक गुठली को अपनी आँखों
व सिर से लगाकर गमले में गाढ़ दिया। छोटी बहू पूजा
के बाद बचा हुआ जल गमले में डालने लगी। कुछ समय बाद
आम का पौधा उग आया, जो देखते ही देखते बढ़ने लगा।
छोटे भाई ने उसे गमले से निकालकर अपने आँगन में लगा
दिया। कुछ वर्षों बाद उसने वृक्ष का रूप ले लिया।
वृक्ष के कारण घर की धूप से रक्षा होने लगी, साथ ही
प्राणवायु भी मिलने लगी। बसंत में कोयल की मधुर कूक
सुनाई देने लगी। बच्चे पेड़ की छाँव में किलकारियाँ
भरकर खेलने लगे।



पेड़ की शाख से झूला बाँधकर झूलने लगे। पेड़ की
छोटी-छोटी लक़िड़याँ हवन करने एवं बड़ी लकड़ियाँ
घर के दरवाजे-खिड़कियों में भी काम आने लगीं। आम के
पत्ते त्योहारों पर तोरण बाँधने के काम में आने लगे।
धीरे-धीरे वृक्ष में कैरियाँ लग गईं। कैरियों से अचार व
मुरब्बा डाल दिया गया। आम के रस से घर-परिवार के
सदस्य रस-विभोर हो गए तो बाजार में आम के अच्छे
दाम मिलने से आर्थिक स्थिति मजबूत हो गई।
रस से पाप़ड़ भी बनाए गए, जो पूरे साल मेहमानों व घर
वालों को आम रस की याद दिलाते रहते। ब़ड़े बेटे को
आम फल का सुख क्षणिक ही मिला तो छोटे बेटे को
पिता का ' आशीर्वाद' दीर्घकालिक व सुख-
समृद्धिदायक मिला।



यही हाल हमारा भी है परमात्मा हमे सब कुछ
देता है सही उपयोग हम करते नही हैं दोष
परमात्मा और किस्मत को देते हैं।

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