ताबे का एक सिक्का -coin



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ताबे का एक सिक्का


 


                                        बहुत समय पहले की बात है |रामनगर में एक भिश्ती  (पानी धोने वाला ) रहता था |दिन भर कड़ी मेहनत के बाद भी पयार्प्त पैसा नही कमा पाता था | उसका जीवन गरीबी  व्यतीत हो रहा था |परन्तु वह फिर भी खुश था |एक दिन उसने बाकी दिनों की अपेक्षा एक ताँबे का सिक्का अधिक कमाया |यह उसके लिए किसी खजाने से कम नही था |उसने सोचा ’’मुझे यह सिक्का सम्भालकर रखना पडेगा आवश्यकता के समय मेरे काम आएगा |

                                             यह विचार करके वह सिक्का छुपाने के लिए एक सुरक्षित स्थान ढूढनें लगा |परन्तु काफी  देर तक ढूंढने के बाद भी उसे सुरक्षित स्थान दिखाई नही दिया |लोटते समय जब वह रास्ते में एक पुराने किले से होकर गुजर रहा था तो उसे अपना खजाना छुपाने के लिए वह स्थान उपयुक्त जान पड़ा | वह महल की दीवारों में कोई ढीली पड़ी ईट तलाशने लगा | भाग्यवश उसे एक आईटी मिल भी गए |उसने थोड़ी सी ताकत लगाकर उस ढीली आईटी को बाहर निकाल लिया और उस खाली स्थान पर   अपना ताँबे का सिक्का छुपाने के बाद आईटी को वापस वही पर पहले की तरह लगा दिया |सिक्का छुपाने के बाद आगे बढने से पहले उसने सोचा अपने द्वारा छिपाए गए कोष को वापस लेने भी तो मुझे आना पडेगा |ये सोच कर उसने उस स्थान को अच्छी तरह से देखा और फिर अपने घर कि और चल पड़ा |


                                              कुछ सालो बाद उसकी शादी हो गई |वह अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा |हालाकि उसकी आर्थिक दशा में कोई विशेष अंतर नही आया था |एक दिन भिश्ती की पत्नी उससे बोली शहर में एक विशाल मेला लगा हुआ है परन्तु हमारे पास मेली घूमने के लिए पर्याप्त पैसा नही है |यह कहकर पत्नी उदास हो गई |पत्नी को उदास देखकर उसे भारी दुःख हुआ परन्तु वह कुछ नही कर सकता था |तभी उसकी आँखे खुशी से चमक उठी और वह अपनी पत्नी से बोला ‘’कोन कहता है की हमारे पास पैसा नही है ?हमारे पास तो पूरा एक ताँबे का सिक्का है | यह सुनकर उसकी पत्नी का चेहरा खुशी से चमक उठा |उसने तुरंत अपनी सहमती प्रकट कर दी |बस फिर क्या था ?भिश्ती प्रसन्नतापूर्वक बिना एक पल की देरी किए अपने घरसे निकल पड़ा |उस सही गर्मी की भारी दोपहर थी |सूरज की किरने आग बरसा रही थी रास्ते गर्म एवं सुनसान थे |वह उबड खाबड रास्ते व खेतों से होता हुआ निरंतर अपनी मंजिल की तरफ बढा जा रहा था |वह प्रसन्न  मुद्रा में गीत गुनगुनाता हुआ चल रहा था |उसे गर्मी का भी अनुभव नही हो रहा था |काफी दूर तक चलने के बाद वह राजा के महल के सामने से गुजरा | संयोगवश राजा ने उसे दोड़ते हुए देख लिया | उसे इस प्रकार दोड़ते देखकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ |तो राजा ने उसे बुलाया और तेज भागने का कारण पूछा तो भिश्ती ने बोला महाराजा पुराने किले की दिवार में मैंने अपने द्वारा संचित कोष छुपा रखा है उसी को लेने जा रहा ह |उसे देखकर मेरी पत्नी बहुत खुश होगी |

                                          राजा ने कहा  ‘’वह तो ठीक है  परन्तु तुम इस भीषण गर्मी में बिना कोई सावधानी बरते शहर के छोर से दूसरे छोर जा रहे हो |यह तुम्हारे स्वास्थ्य के लिए उचित नही है |अच्छा तुमने कितने धन छुपा रखा है |कम से कम एक लाख स्वण मुद्र्आये  तो होंगी ? भिश्ती ने बोला नही महाराज मरे पास इतने धन नही है | राजा ने कहा पचास हजार नही महाराज ये तो बहुत जादा है इसी प्रकार राजा गिनती घटाते हुए बोले परन्तु भिश्ती का जवाब हर बार न में ही रहा | राजा का धैय्र जवाब दे रहा था और राजा ने चिल्लाकर खा अरे भगवान  के लिए बता दो तुमने कितना धन छुपा कर रखा है

भिश्ती ने जवाब दिया एक ताँबें का सिक्का   यह सुनकर राजा ने अपना माथा पकड़ा लिया और वहा पर उपस्थित बाकी लोग ठहाके मारकर हसने लगे भिश्ती ने अपनी बात जारी रखते हुए बोला ‘’मै उस सिक्के से अपनी पत्नी के लिए उसकी पसंद की बहुत साडी वस्तुएँ खरीदूंगा जिससे वह बहुत प्रसन्न होंगी | राजा को उसपर दया आई की एक सिक्के के लिए यह इतनी तेज दुपहरिया में तप जाएगा राजा ने भिश्ती को अपने पास से उसे एक सिक्का दिया भिश्ती ने वह सीके ले लिया लेकिन उसे उसपना भी सिक्का चाहिए था राजा ने कहा शायद इतने उसकी आवश्यकता पूर्ण नही होंगी राजा ने उसे और सिक्का दिया और बोला जाओ लेकिन भिश्ती को अभी भी उसका सिक्का चहिये था उसी को लेने में अदा था राजा बहुत दयालु थे खी इतनी धुप में तबियत खराब न हो जाए |राजा ने उसे सो सिक्के दिए  फिर भी वह भिश्ती को तांबे का सिक्का लिए बिना घर जाने से इनकार कर दिया |अब तो राजा भी भिश्ती को तांबे का सिक्का लिए बिना घर भेजने के लिए दृढ प्रतिज्ञ हो गए |इसलिए भिश्ती को बहुत सा सोना चांदी पैसा दिया उसे भी वह ले लिया फी भी उसे अपने सिक्के के बिना वापस जाने को तैयार नही अब राजा ने उसे सिक्के के बदले अपना आधा राज्य देने का प्रस्ताव रखा |भिश्ती राजा के बात से सहमत हो गया और राजा ने चैन की सास ली और उनके चेहरे पर खुशी झलक रही थी | राजा ने हिष्टि का राज्य अभिषेक किया और बोला तुम कोन सा राज्य का हिस्सा लेना चाहो हो भिश्ती ने बोला महाराज्य |मुझे राज्य का का उतरी भाग चाहिए जहा पर उसका सिक्का था उसने वही जगह मांगी   

                                           यह सुनकर राजा चकित हो गया और उसने अपनी हार  मान ली इस प्रकार अन्ततः भिश्ती ने राज्य के साथ- साथ अपना संचित तांबे का सिक्का  भी प्राप्त कर  लिया  |                                                

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