भाग्य और पुरुषार्थ fate or efforts,which is big
एक बार की बात है राजा विक्रमादित्य अपनी राज्य सभा मे विराजमान थे। उसी समय दरबार में एक विद्वान आया। वह राजा को देख रहा था और कभी अपनी शास्त्र को देख रहा था। कुछ समय बाद वो रोने लगा। राजा ने उससे रोने का कारन पुछा। तब उस विद्वान ने जवाब दिया की हे राजन मैं सामुद्रिक लक्षण का ज्ञाता हु। लोगो के ललाट ,हाथ भुजा पैर,और नाक मुह ऊँगली को देख कर उसका भूत वर्तमान और भविष्य बता सकता हु. आज तक मेरी विद्या ने कभी मुझे धोका नहीं दिया।
लेकिन आज मेरी विद्या ने मुझे गलत साबित कर दिया। मेरा सारा घमंड चुरचूर हो गया। आपके ललाट को देख कर लगता है की आप बहुत गरीब होने चाहिए किन्तु आप मेरे सामने राजा है।
आपकी नाक और मुह को देख कर लगता है की आप बहुत कंजूस व्यक्ति होने चहिये। पर आप मेरे सामने ही दानवीर रहा है आपकी भुजाओ को देख कर लगता है की आप बहुत की निम्न जाती के व्यक्ति है और आपकी इज्जत ही न हो इस तरह का काम आप करोगे। किन्तु आप मेरे सामने ही राजा है आपकी कीर्ति सम्पूर्ण भरत वर्ष में व्याप्त है और आपकी सुव्यस्थासे प्रजाजन सुखी है।
मेरी सारी विद्या के विपरीत आपके लक्षण है इसलिए हे राजन मैं रो रहा था। राजा विक्रमादित्य अपनी सिंघासन से खड़े हुए और कहा राजन आप निराश न हो आपकी विद्या आपको धोखा नहीं दे सकती आपको बाहर के लक्षण से नहीं ज्ञात हो रहा है तो कोई बात नहीं यह कह कर उन्होंने म्यान से तलवार निकली और अपने सीने से लगा कर कहा " मैं अभी आपने सीना चीरता हु आप भीतर से देेख लीजिये सायद आपको कुछ लक्षण मिल जाये ".
इतने में उस विद्वांन ने कहा "बस बस राजन लक्षण मिल गया आप पुरुषार्थी है जिनमे ये गुण हो उनके आगे भाग्य भी बदल जाता है।
इस कहानी हमें यह सिख मिलता की कभी भी हमें भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए आपने मेहनत और पुरुषार्थी पर भरोसा करना चाहिए न की भाग्य के भरोसे रहना चाहिए।
चन्द्रगुप्त
लेकिन आज मेरी विद्या ने मुझे गलत साबित कर दिया। मेरा सारा घमंड चुरचूर हो गया। आपके ललाट को देख कर लगता है की आप बहुत गरीब होने चाहिए किन्तु आप मेरे सामने राजा है।
आपकी नाक और मुह को देख कर लगता है की आप बहुत कंजूस व्यक्ति होने चहिये। पर आप मेरे सामने ही दानवीर रहा है आपकी भुजाओ को देख कर लगता है की आप बहुत की निम्न जाती के व्यक्ति है और आपकी इज्जत ही न हो इस तरह का काम आप करोगे। किन्तु आप मेरे सामने ही राजा है आपकी कीर्ति सम्पूर्ण भरत वर्ष में व्याप्त है और आपकी सुव्यस्थासे प्रजाजन सुखी है।
मेरी सारी विद्या के विपरीत आपके लक्षण है इसलिए हे राजन मैं रो रहा था। राजा विक्रमादित्य अपनी सिंघासन से खड़े हुए और कहा राजन आप निराश न हो आपकी विद्या आपको धोखा नहीं दे सकती आपको बाहर के लक्षण से नहीं ज्ञात हो रहा है तो कोई बात नहीं यह कह कर उन्होंने म्यान से तलवार निकली और अपने सीने से लगा कर कहा " मैं अभी आपने सीना चीरता हु आप भीतर से देेख लीजिये सायद आपको कुछ लक्षण मिल जाये ".
इतने में उस विद्वांन ने कहा "बस बस राजन लक्षण मिल गया आप पुरुषार्थी है जिनमे ये गुण हो उनके आगे भाग्य भी बदल जाता है।
इस कहानी हमें यह सिख मिलता की कभी भी हमें भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए आपने मेहनत और पुरुषार्थी पर भरोसा करना चाहिए न की भाग्य के भरोसे रहना चाहिए।
चन्द्रगुप्त
किस्मत पहले ही लिखी जा चुकी है
तो कोशिश करने से क्या मिलेगा ,
चाणक्य
क्या पता किस्मत में लिखा हो
कि कोशिश से ही मिलेगा।
भाग्य और पुरुषार्थ fate or efforts,which is big
Reviewed by Unknown
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