शांति की खोज...search of peace.........
शांति की खोज.....
एक शहर में एक धनी व्यक्ति रहता था।
उसके पास एक अच्छा जीवन व्यतीत करने के सभी सुख-साधन उपलब्ध थे।
उसे किसी बात की कोई कमी नहीं थी, परन्तु वह फिर भी अपने जीवन से खुश नहीं था।
एक दिन वह व्यक्ति बहुत दुखी और परेशान होकर अपनी समस्या लेकर एक पंडित जी के घर पहुँच गया।
उसने पंडित जी को अपनी सारी बातें बतायी और कहा कि- 'कृप्या कुछ ऐसा उपाय करे कि मैं खुश रहूँ, इसके लिए आप जितना चाहें उतना धन मैं देने के लिए तैयार हूँ।'
धनी व्यक्ति की बात सुनकर पंडित जी ने कहा- 'तुम कल इसी समय मेरे पास आना, मैं कल ही तुम्हें तुम्हारी सारी समस्याओं को समाधान बता दूँगा।'
पंडित जी की बात सुनकर धनी व्यक्ति ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर चला गया।
अगले दिन सुबह-सुबह ही वह व्यक्ति पंडित जी के घर चल दिया।
वह जैसे ही उनके घर के समीप पहुंचा, उसने देखा कि पंडित जी अपने घर के बाहर सड़क पर कुछ ढूंढ़ रहे थे।
उस व्यक्ति ने पंडित जी के पास जाकर उनसे पूछा कि- 'पंडित जी आप सुबह-सुबह घर के बाहर सड़क पर क्या ढूंढ रहे हो।'
पंडित जी बोले- 'मेरी एक अँगूठी खो गयी हैं, मैं काफी समय से उसे ढूँढ रहा हूँ, परन्तु वह मुझे मिल ही नहीं रही।'
पंडिज जी की बात सुनकर वह भी अँगूठी ढूंढने में उनकी मदद करने लगा।
दोनों को अँगूठी ढूँढ़ते हुए काफी समय बीत गया, परन्तु उन्हें अँगूठी नहीं मिली।
वह धनी व्यक्ति थक गया और पुनः उसने पंडित जी से पूछा- 'आपकी अँगूठी कहा गिरी थी।'
उसकी बात सुनकर पंडित जी ने कहा- 'मेरी अँगूठी मेरे घर में कही खो गई थी, परन्तु वहा अभी बहुत अँधेरा हैं, इसलिए मैं उसे सड़क पर ढूंढ रहा हूँ।'
पंडित जी की बात सुनकर उस व्यक्ति ने चौंकते हुए उनसे पूछा- 'जब आपको पता है की आपकी अँगूठी आपके घर में ही खो गयी हैं, तब आप उसे घर बाहर सड़क पर क्यों ढूंढ रहे हो।'
धनी व्यक्ति की बात सुनकर पंडित जी ने मुस्कुराते हुए उससे कहा- 'यह तुम्हारे कल किये गए प्रश्नों का उत्तर हैं।
जीवन की ख़ुशी और शान्ति तो तुम्हारे मन में छुपी हुई हैं, और तुम उसे धन में तलाश कर रहे हो, यही कारण हैं की तुम दुखी हो।'
पंडित जी की बात सुनकर वह व्यक्ति उनके पैरो में गिर पड़ा।
यही बात हम सभी के जीवन पर भी लागू होती हैं।
हम पूरी जिन्दगी केवल धन बटोरने में लगे रहते हैं, और सोचते हैं कि अगर हमारे पास बहुत पैसा होगा और जीवन यापन की सारी वस्तुयें होगी तो हम खुश रहेंगे, परन्तु ऐसा होता नहीं हैं।
स्वामी विवेकान्द जी का भी कहना हैं, ”समस्त
ब्रह्माण्ड हमारे शरीर के अन्दर ही विद्धमान हैं, और हम पूरी ज़िन्दगी इधर-उधर भटकते रहते हैं।
दुसरो पर परोपकार करना, हमेशा सच्चाई का साथ देना, अच्छे विचार रखना यह सब जीवन में सच्चा सुख देता हैं, लेकिन हम ऐसा करते ही नहीं, हम सही जगह खुशियाँ ढूंढ़ते ही नहीं, यही कारण हैं कि हम भी जीवन भर दुखी रहते हैं।
जल का स्त्रोत हमारे सामने ही होता हैं, और हम अपनी अज्ञानता के कारण प्यासे ही खड़े रहते हैं।
केवल धन-दौलत कमाना ही सुख नहीं होता हैं, धन-दौलत से हम केवल जीवन यापन के लिए जरुरी वस्तुयें खरीद सकते है, ख़ुशी नहीं।
खुश रहना हैं, तो हमेशा दुसरो की मदद करो और दूसरों के प्रति अच्छे विचार रखो, उसके बाद आपको जो ख़ुशी मिलेगी वो अतुलनीय होगी जिसकी आप ने कल्पना भी नहीं की होगी।
शांति की खोज...search of peace.........
Reviewed by Unknown
on
00:24
Rating:
No comments: