चरित्र(शिवाजी महाराज ) shivaji-maharaj

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चरित्र


शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज कि शिक्शा ही मिली जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी राजे को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र ती तरह उस्ने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी राजे को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव ऩजर आता है। उसेक बाद उन्होने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसाकि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी राजे के मरने के बाद ही उन्होने अपना राज्याभिषेक करवाया हँलांकि वो उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।

वह् एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अछा कूटनीतिज्ञ भी था। कई जगहों पर उन्होने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय भग लिया था। लेकिन येही उनकी कुट निती थी, जो हर बार बडेसे बडे शत्रुको मात देनेमे उनका साथ देती रही।

शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कुट निती, जिसमे शत्रुपर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियतासे और आदरसहित याद किया जाता है।

शिवाजी महाराज के गौरव मे ये पन्क्तियान लिख गई है :-

"शिवरायांचे आठवावे स्वरुप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप।
शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥"
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