काव्य प्रवाह....poem
काव्य प्रवाह....
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एक बार फिर ये कलम
ख़्वाब पिरोने लगी है....
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कागज की कश्ती बीच
भँवर मे डोल रही है..
कलम की स्याही शब्दों
से हृदय तोल रही है...
सूरत सीरत संजोने लगी है...
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एक बार फिर ये कलम
ख़्वाब पिरोने लगी है....
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भावों की धूल बवंडर
सी उड़ी जा रही है..
उमंगे शब्द शैलाव मे
बहे जा रही है।
हसरते परत-दर-परत
खुलने लगी है....
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एक बार फिर ये कलम
ख़्वाब पिरोने लगी है....
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यादों को सहेजकर
काव्य ग्रंथ रच रहे है..
पल-पल गुजरते लम्हें
इक कहानी बुन रहे है।
अधूरी दास्ताँ भी गज़ब
ढाने लगी है.....
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एक बार फिर ये कलम
ख़्वाब पिरोने लगी है....
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उनींदी आरज़ू चासनी
सी मिठास घोल रही है..
तिखी बातें नमकिनीयत
मे लव्ज़ भिगों रही है।
लीक से हटकर भी
सृजन करने लगी है....
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एक बार फिर ये कलम
ख़्वाब पिरोने लगी है....
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यहाँ सबकी नींद क्यूँ
उड़े जा रही है...?
क्या कलम तलवार बन
मैदान-ए-जंग संभाल रही है?
सियासत भी गश खाने लगी है...
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एक बार फिर ये कलम
ख़्वाब पिरोने लगी है....
--------*प्रीति जैन*(परवीन)**
काव्य प्रवाह....poem
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