बचपन
भीख के कटोरे मे मजबूरी को भरकर
ट्रॅफिक सिग्नल पे ख्वाबों को बेच कर
ज़रूरत की प्यास बुझाता बचपन।।
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नन्हे से जिस्म से करतब दिखा कर
ज़िंदगी की कीमत चुकाता बचपन
सुबह से शाम तक पेट को दबाए
एक रोटी का ख्वाब मन मैं समाए
झूठन से भूख मिटाता बचपन।।।
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बेचैनी के बिस्तर पे करवट बदलता
फूटपाथ पे सपनें सजाता बचपन
फटे कपड़ो मैं अपने तन को समेटे
मुस्कुराहट से खुद को सजाता बचपन।।
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पत्थर के टुकड़ों मैं खिलोने देखता
नन्हे से दिल को समझता बचपन
सुख की छाव से बहुत-बहुत दूर
मज़दूरी की धूप मैं तापता बचपन।।।
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कचरे क ढेर से उम्मीदों को चुनता
ढाबे पर बर्तन रगड़ता बचपन
मजबूरी का बस्ता कंधे पर उठाए
ज़िंदगी से सबक सीखता बचपन।।
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ग़रीबी के आँगन मैं सिर को झुकाए
चन्द सिक्कों मे चुपके से बिकता बचपन
प्यार,त्योहार,खुशी से अंजान
थोड़े से दुलार को तरसता बचपन।।
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गिरता,संभलता,बनता, बिगड़ता
इंसानी दरिंदो से पीटता बचपन
खुदा का वजूद खुद मैं समाए
खुदा को रुलाता ये कैसा बचपन???
दोस्तो आप के घर पर कपडे या
खिलौने हो जो किसी के उपयोग के
लायक हो तो प्लीज आप भी किसी
गरीब बच्चे को जरूर दे आप की एक
छोटी सी मदद किसी के चेहरे पर
मुस्कान ला सकती है और यह नेक
काम करके जो खुशी आपको मिलेगी
वह आप हजारो रूपये खर्चा करके भी
नही पा सकते।।।
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