अनोखा कुआ anokha kua



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राजा भोज एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे वे चाहते थे की प्रजा का ज्ञान बढे तो उनके राज्य

में ऐसा प्रश्न पूछा जाता था जो उनकी प्रजा की सूझ बुझ बढ़ जाती थी  उनके राज्य में अमीर बाट कर खाते थे

और गरीब अमीरों को देखकर  ईष्या नहीं करते थे एक बार राजा भोज के दरबार में एक प्रश्न पूछा गया की ऐसा

कोन सा कुआं है जिसमे गिरने के बाद आदमी बाहर नहीं निकल पाता  है राज्य में कोई  ईस प्रश्न का उत्तर

किसी के पास नहीं था राजा भोज ने कहा इस प्रश्न का उत्तर राजपंडित जी दे सकते है  अब इस प्रश्न का उत्तर

राजपंडित जी के पास नहीं था तो राजा भोज बोले  की अगर इस समय इस  प्रश्न का उत्तर आपके पास नहीं है तो

आप हमे ७ दिन के अंदर बता दे नहीं तो आपको  जितने इनाम आपको मिले हे सब आपको आपस करने होंगे

और नगरी छोड कर जाना होगा

राज्यपंडित इस खतरनाक चुनोती के प्रश्न ढूढने लगे लेकिन उन्हें इस प्रश्न का उत्तर नहीं

मिला सिर्फ १ दिन ही बाकी था राज्य पंडित चिंतित हो गए की अब तो जीवन भर की कमाई हुई इज्जत और

धन जाने वाले हे यही सोचते पंडितजी जंगल की तरफ चले जा रहे थे  तभी रास्ते मै उन्हें एक गडरिया

मिला उसने पंडित जी से पूछा आप इतने चिंतित क्यों है पंडित जी बोले तुझे क्या पता की मेरे जीवन

भर की कमाए और इज्जत सब जाने वाली है तो उस गड़ेरिये ने पूछा क्या  बात है हो सकता है मैं

आपकी मदद कर सकता हू कभी कभी हम जैसे आम आदमी भी ऐसा काम करते है की जो पंडित भी

नहीं कर पाते हे

पंडित जी गडरियो को अपनी पूरी बात बताते है गड़ेरिये ने एक उपाय सोची पंडित जी बोले क्या है

उपाय गड़ेरिये ने बोला ढेर सारा लोहा इकट्ठा  करके रोज सोना बनाओ एक भोज क्या लाखो भोज तूम्हारे

पीछे  भागे गे गडेरिया बोला आप मेरे चेले बन जाओ मैं आपको पारस  दूंगा पंडित जी बोलते  है की तू

दो पैसे का गडरिया और मैं राज्य पंडित तेरा चेला कैसे बनूँ ! गड़ेरिये ने कहा  मत बनो  ! अच्छा मैं तुम्हारा

चेला बनता हू तब गड़ेरिये ने कहा  ठीक है उपाय यह है की भेड़ का दूध पियो और मेरे चेले बनो तो मैं

देता हू पारस पंडित जी भेड़ का दूध ब्रहामण के लिए मना है भेड़ का दूध पंडित पिए तो बुद्धि मारी जाती है

गड़ेरिया बोला तो फिर जाओ  पंडि जी बोले चल पी लेता हू  गडरिया बोला सिर्फ मेरे चेले बनो और भेड़ का दूध

पियो इससे काम नहीं चलेगा अब तो वह दूध पहले मैं पिऊँगा फिर मेरा जूठा आप पियो तो पंडित जी बोले यार

तू तो हद ही करता है  ब्रहामण को जूठा पिलाएगा ठीक पीता हू गडरिया बोला चलो वह बात गयी अब आपके

सामने जो इन्सान की खोपड़ी का कंकाल पड़ा है उसमे दूध दोहुंगा उसको मैं जूठा करूँगा कुत्ते को चढाऊंगा  फिर

तू पियोगे तब  मिलेगा पारस नहीं तो आप अपना रास्ता लीजिए खोपड़ी के कंकाल में पंडित जी दूध पिए बड़ी

कठिन बात है पर मैं तैयार हू गडरिया ने बोला बस “ यही तो कुआं है पंडित जी लोभ तृष्णा का कुआ ऐसा है की

उसमे जो आदमी गिरता हे उसी में गिरता चला जाता है ”

यह सुनकर पंडित सब कुछ समझ जाता है और गडरिये को धन्यवाद देते  है और राजा को उसके

प्रश्न का उत्तर देते है

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