कर्म का अकाट्य सिध्दांत
कर्म का अकाट्य सिध्दांत
मनुष्य के जीवन में पुण्य और पाप दोनों का थोडा –थोडा हिस्सा चलता है और जो जैसा करता वैसा फिर उसको परिणाम भी मिलता है
जयपुर और कोटा के बिच सवाई माधोपुर से थोडा –सा दूर क्वालजी नामक प्रसिध्द तीर्थ है .नारायण शर्मा नाम के एक व्यक्ति के कुछ साथी उस तीर्थ में गए वंहा एक भिखमंगे को देखकर नारायण शर्मा के एक साथी का हृदयपसीजा उसने उस भिखारी से पूछा अरे भाई ये तेरी दोनों टांगो से कैसे कटी /एक्सीडेंट में कटी की क्या हुआ एक्सीडेंट से दोनों पैर बराबर इस ढंग से तो नहीं कट सकते है तू युवक लड़का इस उम्र में तेरी दोनों टांगो कैसे कटी युवक रोते हुए कहा साहब मैंने अपने हाथ से ही ये दोनों टाँगे काटी है
यह सुनकर नारायण शर्मा का दोस्त चकित हो गया अपने पैर जानबूझकर कोई क्यों काटेगा सच बताओ क्या हुआ लड़का बोला मैं गरीब घर का लड़का था बकरियाँ चराता था मेरे स्वभाव में ही हिंसा थी क्रूरताथी कोई जी जन्तु देखता पक्षियो या जानवरों को देखता तो पत्थर मारता था जैसे शैतान छोरे निर्दोष कुत्तों को देखकर पत्थर मार देते पक्षियों को पत्थर मार देते ऐसा मेरा शोक था जंगल में बकरिय चर रही थी कुल्हाड़ी मेरे कंधे पर थी मैं इधर उधर घूमता घामता घनी झाडियों की और निकल गया वहाँहिरनी ने उसी दिन बच्चे को जन्म दिया था
मुझे देखकर मेरी कुल्हाड़ी और कुरता से भयभीत हिरनी तो प्राण बचा के वहाँसे भाग गयी बच्चा भाग नहीं सका मैंइतना कुर और नीच स्वभाव का था की मैंने अपनी कुल्हाड़ी से हिरनी के नवजात बच्चे की चारों टांगोंघुटनों के ऊपर से काट डाली उस समय मुझे क्रूरताका मजा आया
मैंने हिरनी के बच्चे के पैर तो काट लेकिन एक महीने में मेरे पैरों में पीड़ा चालु हो गयी मैं१५-१६ साल का युवक इलाज कर कर के थक गया माँ –बाप को जो क्य्छ दम लगाना था लगा लिया साहब मैं जयपुर के अस्पताल में भारती कराया गया डाक्टरों ने खा की अगर लडके को बचाना है तो इसके पैर कटवाने पड़ेंगे नहीं तो यह मर जायेगा मैंने दोनों पैर कटवा दिए साहब मैंने अपनी टाँगे आप ही काटी है
जब हिरन के बच्चे की टाँगे मैंने काटी उस समय किसीने नहीं देखा था फिरर भी उस समय सबके कर्मो का हिसाब रखने वाला सब कुछ देखनेवाला परमात्मा था दो टांगो तो कट गयी दो हाथ कटने बाकी है क्योकि मैंने उसकी चारों टाँगे काटी थी जब तक कोई किसी के काम आता है तब तक रखते है बाद सब एक दूसरे से मुह मोड लेते है छोटे खाने के बाद मुछे पता चला की कर्म का सिध्दांत अकाट्य है अब मैंमानता हूँ की शुभ और अशुभ कर्म करता को छोड़तेनही अभी संतो के चरणों में मेरी श्रद्धा हुयी काश पहले होती तो मेरी यह दुर्गति नही होती पैर कटने से पहले भिखमंगा होने से पहले अगर सत्संग सुनता तो मैं हिंसक क्रर और मोहताज न बनता
नारायण शर्मा के मित्र ने कहा की उस लडके की दैन्य दशा देखकर लगा की सृष्टिकर्ता कितना न्यायप्रिय कितना सक्षम और कितना समर्थ है
कर्म का अकाट्य सिध्दांत
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