वाहवाही का गुरुर कर दे योग्यता चूर- चूर
वाहवाही का गुरुर कर दे योग्यता चूर- चूर
एक शिष्य ने अपने गुरु से तीरंदाजी सिखी गुरु की कृपा से वह जल्दी ही अच्छा तीरंदाज बन गया सब और से लोगो द्वारा प्रशंसा होने लगी धीरे धीरे उसका अहंकार बड़ने लगा वाहवाही के चलते वह गुरूजी को अपने से भी जादा श्रेष्ठ तीरंदाज मानने लगा
मान बडाई के चक्कर में मनुष्य को इतना अंधा बना देती है की अपनी सफलता के मूल को ही काटने लगता है शिष्य का पतन होते देख गुरु को बहुत दुःख हुआ उसे पतन से बचाने के लिए उन्होंने एक उपाय सोचा एक दिन गुरु जी उसे किसी काम के बहाने अपने साथ दूसरे गाव में गये रास्ते में एक खाई थी जिसे पार करने के लिए पेड़ के तने का पुल बना था गुरु जी उस पेड़ के तने पर सहजता से चलकर पुल के बीच पहुचे और शिष्य से पूछा बताओ कहाँ निशाना लगाऊ .
शिष्य गुरु जी सामने जो पतला-सा पेड़ दिख रहा न उसके तने निशाना लगाइये पर गुरु जी ने एक ही बार में लक्ष्य – भेदन कर दिया और पुल के दूसरी और आ गए फिर उन्होंने शिष्य से भी ऐसा करने को कहा अहंकार के घोड़े पर सवार उस शिष्य ने जैसा ही पुल पर पैर रखा घबरा गया जैसे तैसे करके वह पुल के बीच तो पहुचा किन्तु जैसे ही उसने धनुष उठाया उसका संतुलन बिगड़ने लगा वह घबराकर चिल्लाया गुरूजी गुरूजी बचाइए वरना मैं खाई में गिर जाउंगा
दयालु गुरूजी तुरंत गए और शिष्य का हाथ पकडकर दूसरी तरफ ले गए तब जाकर शिष्य के जान में जान आई उसका सारा अभिमान पानी –पानी हो गया अब उसे समझ आ गया की उसकी सारी सफलताओं के मूल गुरु जी है अपने गुरु के चरणों में गिर गया और क्षमा मांगी मैंभूल गया था की जो मुझे मिला वह सब आपकी कृपा से ही मिला है जैसे हरे भरे पोधे का आधार उसका मूल ही है वैसे ही मेरी योग्यता का आधार आप ही है मैंभूल गया था मुझे क्षमा करे गुरूजी
गुरु जी अपने शिष्य को क्षमा कर देते है और कहते हे की कभी अपनी योग्यता पर घमंड मत करना वरना वह घमंड उसे उसके विनाश का कारण बनता है
वाहवाही का गुरुर कर दे योग्यता चूर- चूर
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