अहंकार ego


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एक बार गणपति जी अपने मौजीले स्वभाव से आ रहे थे वह दिन था चोट का

चन्द्रमा ने उन्हें देखा चंद्र को अपने रूप लावण्य सोंदर्य का अहंकार था उसने गणपति जी का मजाक उड़ाते हुए

कहा क्या रूप बनाया है लम्बा पेट हाथी का सर है आदि कह के व्यंग कसा तो गणपति ने देखा कि दंड के बिना

इसका अहं नहीं जाएगा बोले गणपति जी बोले जा तू किसी को मुह दिखाने के लायक नहीं रहेगा

फिर तो चंद्रमा उगे नहीं देवता चिंतित हुए कि पृथ्वी को सिचने वाला पूरा विभाग गायब अब ओषधियाँ

पुष्ट कैसे होगी जगत का व्यवहार कैसे चलेगा ब्रम्हाजी ने कहा चंद्रमा कि उच्छ्रिंखालता के कारण

गणपति जी नाराज हो गए है

गणपति जी प्रसन्न हो इसलिए अर्चना –पूजा कि गयी गणपति जी जब थोड़े सोम्य हुए तब चंद्रमा कि मुह

दिखाने के काबिल हुआ चंद्रमा ने गणपति भगवान कि स्तोत्र –पाठ द्वारा स्तुति कि तब गणपति जी

कहा वर्ष के और दिन तो मुह दिखाने काबिल रहोगे लेकिन भाद्रपद के शुक्लपक्ष कि चोथके दिन तुमने

मजाक किया था तो एस दिन आगे तुमको कोई देखेगा तो जैसे तुम मेरा मजाक उडाकर मेरे पर

कलंक लगा रहे थे इसे ही तुम्हारे दर्शन करने वाले पर वर्ष भर में कोई भरी कलंक लगेगा ताकि लोगो

को पता चले कि

रूप दिसी मगरूर थीउ 

एदो हुसन ते नाज न कर 

जब भगवान श्रीकृष्ण जैसे ने चौथ का चाँद देखा तो उन परस्यमंतकमणि चुराने का

कलंक  लगा था पर स्यमंतकमणि चुराने का कलंक लगा दिया था हालाकि भगवान श्रीकृष्ण ने मणि चुराई नहीं

थी जो लोग बोलते है कि वह कथा हम नहीं मानते शास्त्र –वास्त्र हम नहीं मानते तो आजमा के देख ले

भाद्रपद शुक्ल चोथ के चंद्रमा के दर्शन कर ले फिर देख प्रतिष्ठा को धुल में मिला दे ऐसा कलंक लगेगा

वर्ष भर में।
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