नारीरत्न – रत्नावती rani ratnawati
इस देश में ऐसीअनेक वीर कन्याएँ हुई जिन्होंने अपनी सुझबुझ विवेक और चतुराई से देश व धर्म की रक्षा की है तथा शत्रुओ को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया ऐसी ही सूझबुझ व मानवीय सम्वेदना से परिपूर्ण कन्या थी जैसलमेर के राजा महारावल रत्नसिंहकी पत्री रत्नावती एक बार राजा रत्नसिंह शत्रुओ पर विजय पाने हेतु किले से बाहर गए थे राजा की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर अलाउदीन खिलजी की सेना ने सेनापति मालिक काफूर के नेतृत्व में किले पर आक्रमण कर दिया
किले के चारों तरफ से दुश्मन सेना से घिरा देखकर रत्नावती घबरायी नही मैं तो अबला हूँ मैंक्या कर सकती हूँ –इसे दुर्बल विचारों को उसने उठने ही नहीं दिया प्रथम तो ओम कार का उच्च स्वर में दीर्घ उच्चारण कर साहस हिम्मत आत्मबल को जाग्रत किया और फिर जंहासे हिम्मत आत्मबल प्रकट होता है उस आत्म –परमात्मदेव में कुछ समय शांत हो गयी एकाएक राजपूत सैनिको ने देखा की सैनिक वेश में घोड़े पर सवार एक कन्या चमचमाती तलवार हाथ में लिए किले के बुर्ज पर खड़ीहै उसने सैनिको सम्बोधित करते हुए कहा हे वीर योद्धाओं तुममे परमात्मा का अथाह बल व साम्थ्य्र भरा है उठो आगे बढ़ो ऐसा क्या है जो तुम कर नहीं सकते कोन –सी शक्ति है जो तुम्हे विजयी होने से रोकने में समर्थ हो
हमें रोक सके ये जमाने में दम नही
हमसे जमाना है जमाने से हम नहीं
पलभर में सैनिको के चेहरों पर छायी उदासी उत्साह में बदल गयी वह कन्या कोई और नहीं बल्कि वीरांगना रत्नावती ही थी सेनापति मलिक काफूर ने कई बार किले पर आक्रमण किया परन्तु हर बार हारा किलो को तोडना असम्भव जान सैनिको का एक दल किले की दिवार पर चढ़ने लगा रत्नावती ने अपनी सूझ बुझ का परिचय देते हुए पहले तो अपने सैनिको को पीछे हटा लिया और शत्रु सैनिक को चढ़ने दिया पर जैसे ही वे किले की दिवार पर ऊपरतक चढ़ आये राजकुमारी के आदेशानुसार राजपूत सैनिक शत्रु पर पत्थर व गर्म तेल की बोछार करने लगे जिससे शत्रु का पूरा दल नष्ट हो गया इस बार भी अलाउदीन की सेना को मुहँ की खानी पड़ी मालिक काफूर अपनी हर चाल को विफल होता देख बिन पानी की मछली की तरह छटपटाने लगा उसको समझ में आ गया की वीरता से जैसलमेर का किला जितना असम्भव है उसने द्वारपाल को सोने की ईटोका लालच देकर किले में प्रवेश करने की कूटनीति चाल चली पर दव्र्पाल भी समझ का धनी और वफादार रहा होगा उसने रत्नावती को सारी बात बता दी राजकुमारी ने उसे किले का दरवाजा खोलने की अनुमति दे दी
आधी रात को १०० सैनिको के साथ सेनापति मलिक काफूर ने किले में प्रवेश किया द्वारपाल अचानक गायब हो गया सेनापति रास्ता भटकने के कारण भयभीत तो था ही इतने में किले के बुर्ज पर खड़ी रत्नावती की हसी सुनकर उसकी हालत शेरनी के मुह में फसे बकरे की तरह हो गयी रत्नावती ने सभी को बंदी बना लिया
किला जितना असम्भव जानकर अलाउदीन ने राजा रतनसिंह के पास संधि का प्रस्ताव भेजा और एक दिन रत्नावती ने देखा की मुगल सेना तम्बू-डेरा उखाड रही है और उसके पिटा अपनी सेना के साथ विजयी मुद्रा में वापस आ रहे है रत्नावती ने मुगल सेनापति को छोड़ दिया और राज्य में शान्ति स्थापित हो गयी
रत्नावती ने अपनी बुद्धि साहस धैर्य शक्ति और पराक्रम का परिचय दिया
नारीरत्न – रत्नावती rani ratnawati
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शिखंडी कोन थे
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