विश्वासों फलदायक trust
विश्वासों फलदायक
बहुत समय पहले रायगढ़ नामक नगर में राजा दीनदयाल सिंह राज्य करते थे उनके भतीजे का नाम था अंगद सिंह वह वास्तव में बालिपुत्र अंगद की तरह वीर निडर और भक्त युवक था
एक बार किसी मुसलमान सूबेदार ने रायगढ़ पर चढ़ाई कर दीराजा दीनदयाल सिंह की सेना छोटी थी वे घबरा गए और सोच में पड़ गए की अब रक्षा हेतु क्या उपाय किया जाय उनकी घबराहट देखकर अंगद सिंह ने उनकी चिंता का कारण पूछा दीनदयाल बोले बेटा हमारे पास इतनी सेना नहीं है की हम उनका मुकाबला कर सके
अंगद सिंह ने कहा चाचाजी युद्ध में विजय सेना के कम या ज्यादा होने से नहीं होती है आप आज्ञादे तो मैंसेना को लेकर युद्ध करने जाता हू और देखता हू की दुश्मन कितना वीर है बेटा तेरा साहस बता रहा है की विजय तेरी ही होगी अंगद और सूबेदार में घमासान युद्ध होता है और अंगद जीत जाता है अंगद ने सूबेदार का मस्तक से मुकुट उतार लिया और जयघोष के साथ रायगढ़ वापस लोट आया सूबेदार के मुकुट में बहुमूल्य सुंदर रत्न जड़े हुए थे अंगद सिंह ने उसमे से एक हीरा निकाल लिया और उसे भगवान जगन्नाथजी को चढाने का संकल्प किया पर राजा दीनदयाल सिंह संसारी व्यक्ति थे धर्म –कर्म में उनको विश्वास नहीं था और भगवान की पूजा वे केवल लोगो को दिखने के लिए करते थे ऐसेबहुमूल्य हीरे को मंदिर में चढाने की बात अच्छी नहीं लगी वे अंगद सिंह पर हिरा देने के लिए दबाव डालने लगे लेकिन अंगद सिंह ने स्पष्ट इनकार कर दिया
राजा देखा की इस पराक्रमी और साहसी युवक से झगड़ा करके हिरा लेना सम्भव नहीं है तो उसने भोजन मैं विष मिलवादिया अंगद सिंह ने अपने भोजन को नियमानुसार भगवान को भोग किया लगाया रसोइये को अपनी करनी पर पछतावा होने लगा और उसने सारी बात अंगद सिंह को बता दी अंगद सिंह ने बोला की अब तो भोजन मैंने भोग लगा दी अब इस भोजन को मैं त्याग नहीं सकता
अंगद सिंह ने पूरा खाना खत्म कर दिया उसके अटल विश्वास ने उसे कुछ नहीं हुआ राजा का दुष्ट व्यवहार कपट निती और स्वाथ बुद्धि देखकर अंगद को बड़ा खेद हुआ उसने निश्चय किया की वह अब यहाँ नहीं रहेगा जगन्नाथपुरी जाकर हीरा चढाऊगा अंगद सिंह रायगढ़ से पांच –सात मिल दूर एक तालाब के किनारे शांत भाव से भगवान की पूजा कर रहा था सिपाहियों ने उसे घेर लिया और कहा हीरा हमें दे दीजिए नहीं तो हम आपको मारकर उसे ले जायेगे अंगद के पास कोई हथियार नहीं था और सिपाहियों से घिरा था तो उसने आँखे मुद् ली तन –मन बुद्धि के प्रयासों को विराम दे दिया और अन्तर्यामी की शरण में हो गया शस्त्र चलाने की सत्ता जिससे आती है वह परम समर्थ सत्ता तो मेरे साथ है अब वही मेरा संकल्प पूरा करे महान असमंजस की इन घड़ियों में वही अन्तर्यामी मुझे मार्ग दिखाए एतत्ईश्वरापणमस्तु ..............कहकर हीरे को पानी में फेक दिया और सिपाहियों ने भर प्रयास किया लेकिन हिरा नहीं मिला सिपाही वापस लोट गए तालाब से हीरे निकलवाने के बहुत प्रयास करवाया लेकिन हीरा नही मिला
अंगद सिंह जब जगन्नाथजी के मंदिर पंहुचा तो देखा की भगवान के गले में वही रत्नहार हीरा चमक रहा था भगवान की सर्वसमर्थता परम सुहृदता देख उसकी आँखों से प्रेमाश्रुओ की सरिताएँ बह चली और वह भगवान को बारम्बार प्रणाम करने लगा और अंगद सिंह ने अपना शेष जीवन भगवान के चरणों में बिता दिया
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